बरेली में बच्चन जी की आत्मकथा की पडताल..!
# हरिवंश_राय_बच्चन जी से # बरेली के # निरंकार_देव_सेवक जी की प्रगाढ मित्रता थी। वो निरंकार देव सेवक जी को नियमित पत्र लिखा करते थे। निरंकार जी ने उनके पत्रों के संग्रह को प्रकाशित भी कराया था। हरिवंश राय जी ने जब पहली बार तेेजी बच्चन जी को देखा था तो अपने उस अनुभव को ''क्या भूलूं क्या याद करू'' में लिखा है जिसे मैने अपनी पिछली पोस्ट में आपसे साझा किया था। आज तेजीजी के प्रथम आग्रह और उसके परिणाम का जिक्र करना चाहूंगा । उन्होंने अपनी आत्मकथा में आगे लिखा है – ''....वह नए वर्ष के आगमन की रात थी। तेजी सहित सबने कविताएं सुनाने का आग्रह किया। हताश बच्चनजी की मानसिक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब तेजी जैसी स्वरूपवान युवती ने मदहोश कर देने वाली आवाज में उनसे अनुरोध किया - ‘अजी कुछ सुनाइए ना?’ तभी जहां मधुशाला के एक-दो जाम छलकाए जाने के बजाय ये पंक्तियां सुना दीं..- ''क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूं? मैं दुःखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, रीति दोनों ने निभाई, किंतु इस आभ