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बरेली में बच्चन जी की आत्मकथा की पडताल..!

# हरिवंश_राय_बच्चन   जी से  # बरेली   के   # निरंकार_देव_सेवक   जी की प्रगाढ मित्रता थी।   वो निरंकार देव सेवक जी को नियमित पत्र लिखा करते थे। निरंकार जी ने उनके पत्रों के संग्रह को प्रकाशित भी कराया था। हरिवंश राय जी ने जब पहली बार तेेजी बच्चन जी को देखा था तो अपने उस अनुभव को ''क्या भूलूं क्या याद करू'' में लिखा है जिसे मैने अपनी पिछली पोस्ट में आपसे साझा किया था।   आज तेजीजी के प्रथम आग्रह और उसके परिणाम का जिक्र करना चाहूंगा । उन्होंने अपनी आत्मकथा में आगे लिखा है – ''....वह नए वर्ष के आगमन की रात थी। तेजी सहित सबने कविताएं सुनाने का आग्रह किया।   हताश बच्चनजी की मानसिक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब तेजी जैसी स्वरूपवान युवती ने मदहोश कर देने वाली आवाज में उनसे अनुरोध किया -   ‘अजी कुछ सुनाइए ना?’ तभी जहां मधुशाला के एक-दो जाम छलकाए जाने के बजाय ये पंक्तियां सुना दीं..- ''क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?   क्या करूं? मैं दुःखी जब-जब हुआ   संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,   रीति दोनों ने निभाई, किंतु इस आभ

पोस्टिंगनामा : नीड़ का पहला तिनका

स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है – ''....जब मैं बरेली गया था, तब मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा कि इसी बरेली में पांच वर्ष बाद तेजी से मेरी सगाई होगी। अदृश्य कहीं से देख रहा था कि बरेली की उस यात्रा में ही मैं अपने नीड़ का पहला तिनका रख आया था।..'' हरिवंश रायजी ज्ञानप्रकाश जौहरी के मेहमान बन कर गए थे वे बरेली कॉलेज में अंग्रेजी के लेक्चरर थे। वहीं पर उनकी अपने समय के प्रसिद्ध कवि  # निरंकार_देव_सेवक  से भी निकटता बढ़ी। बच्चन जी ''क्या भूलूं क्या याद करूं'' में आगे लिखते हैं- ''..बात 31 दिसंबर 1941 की है, प्रकाश (ज्ञानप्रकाश) ने तार भेजकर मुझे अचानक बरेली बुला लिया। घर पहुँचने के बाद जब 'चाय आ जाती है तो वे (प्रकाश) अपनी पत्‍‌नी प्रेमा से कहते हैं, तेजी को भी आवाज दे दो, जाग गई होंगी। यह नाम प्रकाश के घर में पहली बार सुनता हूँ। मुझे बताया जाता है, तेजी असल में तेजी सूरी हैं। फतेहचंद कालेज, लाहौर में मनोविज्ञान पढ़ाती हैं। वहां प्रेमा प्रिंसिपल होकर गई हैं। प्रेमा लाहौर में इन्हीं के साथ रहती थीं। बडे़ दिन की छुट्टियों में ब

निरंकार देव सेवक

# बरेली अपनी कविताओं के लिए पहचाने जाने वाले निरंकार देव सेवक को बरेली के लोगों ने भुला दिया शहर में न तो देव का स्मारक है और न ही उनके याद में कोई बड़ा आयोजन होता है..! श्री निरंकार देव सेवक जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को उजागर करती कोई रचना अथवा अपना आलेख मेल द्वारा प्रेषित कीजिये। प्राप्त रचनाओें में एक आलेख और तीन रचनाओं का चयन किसी वरिष्ठ रचनाकार से कराकर उन्हे पुरस्कृत किया जायेगा। यदि विजेता शहर से बाहर के होंगे तो उन्हे प्रमाणपत्र डाक से भेजा जायेगा। रचनाएं इस मेल पर भेजें Kavitakoshbly@gmail.com