पोस्टिंगनामा : नीड़ का पहला तिनका

स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है –
''....जब मैं बरेली गया था, तब मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा कि इसी बरेली में पांच वर्ष बाद तेजी से मेरी सगाई होगी। अदृश्य कहीं से देख रहा था कि बरेली की उस यात्रा में ही मैं अपने नीड़ का पहला तिनका रख आया था।..''
हरिवंश रायजी ज्ञानप्रकाश जौहरी के मेहमान बन कर गए थे वे बरेली कॉलेज में अंग्रेजी के लेक्चरर थे। वहीं पर उनकी अपने समय के प्रसिद्ध कवि #निरंकार_देव_सेवक से भी निकटता बढ़ी।
बच्चन जी ''क्या भूलूं क्या याद करूं'' में आगे लिखते हैं-
''..बात 31 दिसंबर 1941 की है, प्रकाश (ज्ञानप्रकाश) ने तार भेजकर मुझे अचानक बरेली बुला लिया। घर पहुँचने के बाद जब 'चाय आ जाती है तो वे (प्रकाश) अपनी पत्‍‌नी प्रेमा से कहते हैं, तेजी को भी आवाज दे दो, जाग गई होंगी। यह नाम प्रकाश के घर में पहली बार सुनता हूँ। मुझे बताया जाता है, तेजी असल में तेजी सूरी हैं। फतेहचंद कालेज, लाहौर में मनोविज्ञान पढ़ाती हैं। वहां प्रेमा प्रिंसिपल होकर गई हैं। प्रेमा लाहौर में इन्हीं के साथ रहती थीं। बडे़ दिन की छुट्टियों में बरेली आने लगीं तो तेजी को साथ ले आई। इतने में दरवाजे का एक पल्ला धीरे से खुलता है और मिस सूरी कमरे में प्रवेश करती हैं। ..उनके कमरे में प्रवेश करते ही मैं उठकर खड़ा हो गया। प्रेमा ने उनका परिचय दिया,
''मेरी सहेली तेजी...!''
प्रकाश ने मेरा परिचय दिया,
''मेरे मित्र बच्चन...!!''
उनका रूप प्रथम दृष्टि में किसी को भी अभिभूत करने को पर्याप्त था..।''
वह नए वर्ष के आगमन की रात थी। सबने बच्चन से कविताएं सुनाने का आग्रह किया। बच्चन जी ने अपने जीवन की निराशा को प्रदर्शित करने वाला एक गीत सुनाया और उसके बाद के घटनाक्रम को कल साझा करूंगा 
आज आप तो आप उन पंक्तियों को मेरी आवाज में सुने लिंक कमेंन्ट बाक्स में दे रहा हूं  
https://www.youtube.com/watch?v=iWRaJgcD638&fbclid=IwAR1qaR_9mme9W1ugaGhDCA8WVCv7WXI6_hcgwryMpWlTvWoejTuNj07YjiE


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