नहीं किसी की मालिकी ..सबै भूमि गोपाल की...! (भाग 1)

सर्वोदय यात्रा का संकल्प

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ उसके छह माह बीतने तक आजादी के नायक महात्मा गांधी की हत्या हो गई। लगभग ढाई वर्ष बाद 26 जनवरी 1950 को हमने अपना संविधान भी अंगीकार कर लिया लेकिन महात्मा गांधी के सपनों का भारत दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। भूख और अशिक्षा भारतीयों की मूल समस्या थी और स्वतंत्रता के नाम पर देश के सभी नागरिक अनाज के लिए सरकार की ओर ही देख रहे थे।
धीरे धीरे इसी स्थिति में तीन साढ़े तीन वर्ष व्यतीत हो गए और कोई सुधार न हुआ तो महात्मा गांधी जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोवा भावे ने अनाज की कमी का हल निकालने के लिए "सर्वोदय यात्रा" करने का संकल्प लिया।
हैदराबाद के शिवरामपल्ली में 8 अप्रैल से 11 अप्रैल 1951 में एक सर्वोदय सम्मेलन होने वाला था

पवनार आश्रम में सर्वोदय समाज और सर्व सेवा संघ के परस्पर संबंध में हो रही चर्चा के दौरान एक भाई ने विनोबा जी से पूछा कि-
'' हैदराबाद में जो सर्वोदय सम्मेलन हो रहा है आप उस में आने वाले हैं या नहीं...?''

विनोबाजी ने कहा-
'' आने का विचार नहीं है ...''
विनोबाजी के निकट परिचितों के लिए यह उत्तर हताश करने वाला था लेकिन अनपेक्षित नहीं था क्योंकि इस बारे में पहले भी चर्चा हो चुकी थी लेकिन प्रश्न करता भाई के लिए यह उत्तर शायद आना परीक्षित और आज के हालात को देखते हुए उचित भी नहीं था
 उन्होंने बड़े दर्द के साथ उतनी ही दृढ़ता के साथ पुनः आग्रह किया-
''... सर्वोदय समाज और सम्मेलन आप की ही प्रेरणा का फल है ....अभी वह बाल्यावस्था में है.... दूर.दूर से सेवक सत्संग के लिए आते हैं और एक खास नेतृत्व ना मिलने से निराश होकर लौट जाते हैं ....ऐसी हालत में नहीं आयेंगे तो कैसे चलेगा...? इसके बजाय तो सम्मेलन बंद ही कर देना बेहतर होगा...''
 विनोवा जी की और भी कई दिक्कतें थी उनका थोड़ा सा जिक्र हुआ, चर्चा हुई, लेकिन विनोबाजी जानते थे कि उस भाई ने जो बात कही है वह सभी कार्यकर्ताओं के मन की बात थी।  विनोबाजी ने कार्यकर्ताओं की ओर देखा और जिस तटस्थता से सम्मेलन में नहीं आने की बात कही थी उतने ही विनम्र और तटस्थ शब्दों से उन्होंने कहा -
''...अच्छा मैं आता हूं...''
 इस जवाब का उच्चारण करने से पहले उन्होंने यह भी पूछ लिया कि -
''सम्मेलन स्थान यहां से कितनी दूर है..''
 जवाब मिला -
''300 मील... समझ लीजिए...''
विनोबा जी के आने की बात सुनकर सबको आनंद हुआ लेकिन शायद ही किसी के विचार में आया हो कि विनोबाजी इस सम्मेलन में पैदल पहुंचने वाले हैं
8 मार्च 1951 को सुबह 400 बजे विनोबाजी ने प्रार्थना की और पवनार आश्रम यानी परमधाम आश्रम से विदा ली
इस यात्रा का उद्देश्य हैदराबाद में होने वाले ''सर्वोदय सम्मेलन'' में प्रतिभाग करना था परमधाम आश्रम से विनोबाजी के साथ कुल 7 लोगों की टुकड़ी रवाना हुई
इन सब का सामान उस बैलगाड़ी में रख लिया गया जो यह गाड़ी हैदराबाद तक साथ जाने वाली थी आगे चल कर दो साइकिलओं की व्यवस्था और कर ली गई
पवनार आश्रम से निकलकर वर्धा के लक्ष्मी नारायण मंदिर में विनोबा जी ठीक 600 बजे पहुंच गए थे नारायण भगवान का दर्शन करना और वर्धा निवासियों से विदा लेना एक छोटा सा कार्यक्रम था
इस दौरान विनोबाजी लक्ष्मी नारायण जी की मूर्ति के सामने खड़े हो गए और ऊंचे स्वर में विष्णु स्रोत गाने लगे-
''.. अच्युतम केशवम राम नारायणम ..''
अंत में भगवान को नमन किया और आशीर्वाद लेकर मनोरम यात्रा आरंभ की
वर्धा का यह लक्ष्मी नारायण मंदिर खासतौर पर जमुनालाल बजाज जी के प्रयासों से हरिजन बंधुओं के लिए दर्शनार्थ खोल दिया गया था.!
8 मार्च 1951 को वो पवनार आश्रम से निकले तो उनका पहला पड़ाव था वर्धा जनपद का वायगांव., जो पवनार आश्रम से 13 मील की दूरी पर स्थित था  !
अपने पहले पड़ाव वायगांव में उन्होंने आह्वाहन किया कि हमें स्वावलंबी बनना है, कर्मनिष्ट बनना है, लेकिन जो लोग सक्षम है वो मजदूरी के रूप में अनाज का भुगतान करे जिससे गरीब भूमिहीन के घर पर भी चूल्हा जल सके और उसके बच्चे भी भोजन पा सकें..!
अनाज के अतिरिक्त मजदूरी के भुगतान में कमी बेसी की जा सकती है परन्तु मजदूरी के मद में न्यूनतम पचास तोला अनाज के भुगतान का संकल्प लिया जाना चायिहे ....। 
संत की सर्वोदय यात्रा के पहले आह्वाहन का असर उस दिन दिखलाई नही पडा परन्तु इस यात्रा के अगले पडाव वाले ग्राम रालेगांव में कुछ लोग इस आह्वाहन से प्रभावित हुये। 
संत विनावा की यह सर्वोदय यात्रा कालांतर में एक विशिष्ट यात्रा सिद्ध हुई..!

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